

इस मंदिर की स्थापना ही भगवान का चमत्कार है। श्री गोविंदराय जी और श्री माधवराय जी भगवान की दोनों मूर्तियां अलग अलग स्थान से प्राप्त हुई है। लगभग 215 वर्ष पहले सिध्दपुर के आसपास के किसान अनाज कपास आदि बेचने हेतु सिध्दपुर के बाजार में आते थे । एक किसान की कपास की गाडी में एकदम वजन बढ जाता है । मां सरस्वती के पट में किसान व्दारा गाडी में तलाश करने पर श्री माधवराय जी मूर्ति कपास में से मिली, उस सफेद मारबल की बनी मूर्ति को किसान ने नदी के घाट पर उतारी । उस गांव के लोगों को पता चला तो गांव के लोगों ने मूर्ति को गांव में लाकर मंदिर बनाने की शुरूआत की।
उसी समय श्री गोविंदराय जी की मूर्ति बिन्दू सरोवर पीछे जंगल में मिली । लोगों का यह कहना है कि कच्छ के एक किसान के खेत में यह मूर्ति गढी हुई पाई थी । भगवान ने किसान के स्वप्न में आकर कहा। कुछ खुदाई के बाद मूर्ति को बाहर निकाल कर सिध्दपुर बिन्दु सरोवर के जंगल में रखी । गांव के लोगों को यह खबर मालूम पडने पर मूर्ति लाकर त्रिवेदी परिवार के बडे बुजुर्गो ने भगवान का मंदिर बनाकर दोनों मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके भव्य मंदिर की स्थापना की। इसी कारण इस परिवार सदस्यों को वारसा पाने का हक है। इतिहासकारों ने बताया की चंद्रगुप्त और चाणक्य के समय की ये मूर्तियां है। भगवान के आयुध शंख्,चक्र , गदा और पदम का उपर से अनुमान होता है।
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